प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना और सब्सिडी: क्या है हाल-फिलहाल की बड़ी खबर?
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) गरीब-गरीब-महिलाओं को रसोई में स्वच्छ ईंधन (एलपीजी) उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी पहल है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए बेहतर है, बल्कि घरेलू महिलाओं की ज़िन्दगी में सुविधा और गरिमा भी लाती है। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता है, आर्थिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कीमतों के कारण इस योजना में सब्सिडी को लेकर कई उतार-चढ़ाव भी देखने को मिल रहे हैं।
हाल की बड़ी घोषणा: सब्सिडी जारी
अगस्त 2025 में केंद्र सरकार की कैबिनेट ने यह मंजूरी दी है कि PMUY लाभार्थियों को ₹300 प्रति 14.2 किग्रा सिलेंडर की “टार्गेटेड सब्सिडी” दी जाए।
हालांकि, इस सब्सिडी की अधिकतम सीमा सालाना 9 रिफिल तक तय की गई है (5 किग्रा सिलेंडर के लिए प्र-रेटेड)।
इसके लिए अगले वित्तीय वर्ष (2025-26) में कुल ₹12,000 करोड़ का बजट रखा गया है।
यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उज्ज्वला योजना के लाखों लाभार्थी परिवारों को गैस की लागत में राहत मिलती रहती है और वे सफाई वाले ईंधन का उपयोग जारी रख सकते हैं।
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समायोजन और बदलाव: पहले और अब में फर्क
यह नई सब्सिडी संरचना पुराने मॉडल से थोड़ा अलग है, और इसमें कुछ समायोजन किए गए हैं:
रिफिल की संख्या में कटौती
पहले लाभार्थियों को 12 रिफिल तक सब्सिडी मिल सकती थी। लेकिन नई मंजूरी में यह 9 रिफिल तक सीमित कर दी गई है।
पहली रिफिल और कनेक्शन मुफ्त
उज्जवला 2.0 के अंतर्गत, लाभार्थियों को पहली रिफिल मुफ्त मिलती है, साथ ही स्टोव और कनेक्शन (सुरक्षा होज, पेज़र रेगुलेटर आदि) की लागत भी सरकार वहन करती है।
सब्सिडी सीधे बैंक खाते में
सब्सिडी का भुगतान “डायरेक्ट बेनिफिशरी ट्रांसफर” (DBT) के माध्यम से किया जाता है, जिससे लाभार्थियों तक पारदर्शी तरीके से राशि पहुंचती है।
बढ़ती कनेक्शन संख्या
सरकार ने 2025-26 में 25 लाख अतिरिक्त PMUY कनेक्शन जोड़ने की भी मंजूरी दी है, जिससे उज्जवला योजना की पहुंच और भी बढ़ेगी।
क्यों हो रहा ये समायोजन?
इस सब्सिडी संरचना में बदलाव सिर्फ खर्च को नियंत्रित करने के लिए नहीं है, बल्कि कुछ और महत्वपूर्ण कारण हैं:
अंतरराष्ट्रीय LPG कीमतों का दबाव: भारत का बड़ा हिस्सा एलपीजी आयात पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव न सिर्फ तेल कंपनियों को प्रभावित करते हैं, बल्कि घरेलू सब्सिडी बोझ भी बढ़ाते हैं।
उपयोग में वृद्धि: सरकार का अनुमान है कि इस तरह की सब्सिडी नीति से उज्जवला परिवारों में एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पारंपरिक ईंधनों (लकड़ी, कोयला आदि) पर निर्भरता कम होगी।
लागत प्रबंधन: सब्सिडी सीमित कर (9 रिफिल) सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि अधिक ज़रूरतमंदों तक यह सुविधा पहुंचे, और साथ ही सब्सिडी पर उसका वित्तीय बोझ बहुत ज़्यादा न बढ़े।
राज्य स्तर पर स्थिति: सब्सिडी + अतिरिक्त समर्थन
केन्द्र की नीतियों के अलावा, कई राज्यों में उज्जवला लाभार्थियों को अतिरिक्त राहत मिलती रही है:
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दिवाली के मौके पर उज्जवला लाभार्थियों को मुफ्त LPG सिलेंडर देने का ऐलान किया है।
यह कदम न सिर्फ त्योहारी राहत का हिस्सा है, बल्कि यह राजनीतिक एक्शन भी माना जा रहा है क्योंकि यह महिला वोटों को सीधे लाभ पहुंचाता है।
ऐसे राज्य-पैकेज यह दर्शाते हैं कि सिर्फ केंद्र की सब्सिडी ही नहीं, राज्य भी उज्जवला योजना को महत्व देते हैं और उसे स्थानीय स्तर पर और अधिक सशक्त करना चाहते हैं।
चुनौतियाँ और सवाल
हालांकि यह सब्सिडी निर्णय लाभार्थियों के लिए राहत की बात है, लेकिन कुछ मुद्दे और विचार-योग्य बिंदु हैं:
रिफिल सीमा
रिफिल की संख्या घटाकर 9 करने से वे परिवार जिन्हें पहले 12 तक मिलती थी, उन्हें कमी महसूस हो सकती है। खासकर अधिक खाना पकाने वाले परिवारों पर इसका असर हो सकता है।
लाभार्थियों का पता और पहुँच
कुछ दूरदराज या पिछड़े इलाकों में रहने वाले लाभार्थियों के लिए यह सवाल है कि क्या वे लगातार रिफिल कर सकेंगे, या गैस एजेंसी की पहुँच और वितरण में दिक्कत होगी।
ई-KYC और सत्यापन
हाल ही में कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि LPG सब्सिडी पाने के लिए ई-KYC (Aadhaar आधारित) अनिवार्य किया जाना है। (The Times of India) जो लोग इस प्रक्रिया पूरा नहीं करते, उन्हें 8वीं और 9वीं रिफिल की सब्सिडी रोकी जा सकती है।
नियामक और वित्तीय दबाव
सब्सिडी जारी रखने के लिए सरकार को बड़ा बजट आवंटित करना पड़ता है — भविष्य में यदि अंतरराष्ट्रीय LPG की कीमतें ज्यादा बढ़ें, तो यह बोझ और भी बढ़ सकता है।
भविष्य की संभावनाएँ
यह बदलती पॉलिसी उज्ज्वला योजना के लिए कुछ नए रास्ते खोलती है:
सब्सिडी की संरचना में लचीलापन: सरकार भविष्य में रिफिल की सीमा, राशि या पात्रता पुनरावलोकन कर सकती है — जैसे कि एक आर्थिक सर्वेक्षण या चुनावी वर्ष के हिसाब से एडजस्टमेंट।
राज्य-केन्द्र साझेदारी: जैसे यूपी ने मुफ्त सिलेंडर दिया, वैसे ही अन्य राज्यों में स्थानीय सब्सिडी पैकेजों के रूप में उज्जवला को और मजबूत किया जा सकता है।
प्रौद्योगिकी और ट्रैकिंग: ई-KYC, डिजिटल भुगतान और DBT जैसी प्रणालियों का इस्तेमाल बढ़ाकर लाभार्थियों तक सब्सिडी की पहुंच और ट्रांसपेरेंसी बेहतर की जा सकती है।
सस्टेनेबल मॉडल: सब्सिडी पूरी तरह खत्म करने की बजाय, सरकार “बाय-इन” मॉडल बना सकती है, जहां लाभार्थी धीरे-धीरे सब्सिडी पर निर्भरता कम करें और बाजार-दर पर रिफिलिंग करें, साथ ही आवश्यक सामाजिक सुरक्षा बनाए रखी जाए।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की सब्सिडी को लेकर केंद्र सरकार का नवीन निर्णय — यानी ₹300 प्रति सिलेंडर और 9 रिफिल की सीमा — यह दर्शाता है कि सरकार मिशन को जारी रखना चाहती है, लेकिन वित्तीय संतुलन बनाए रखने की चुनौती से भी वाकिफ है। यह नीति न केवल लाखों गरीब महिलाओं की रसोई को स्वच्छ बनाती है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक लाभ भी देती है।
वहीं, राज्य स्तर पर कुछ अतिरिक्त सब्सिडी और मुफ्त सिलेंडर जैसी पहलकदमियाँ यह दिखाती हैं कि योजना में स्थानीय और केंद्र दोनों स्तरों पर गहराई से काम किया जा रहा है। भविष्य में ई-KYC, डिजिटल प्रणाली और साझेदारी मॉडल जैसी रणनीतियाँ उज्ज्वला की शक्ति को और बढ़ा सकती हैं।


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