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26 दिसंबर, 2025

Aravali parvat ke bare me इतिहास, संरक्षण और सरकारी नियमों की पूरी कहानी

 

Aravali parvat ke bare me  इतिहास, संरक्षण और सरकारी नियमों की पूरी कहानी



अरावली पर्वत श्रृंखला और 100 मीटर नियम: संपूर्ण विवरण

अरावली पर्वत श्रृंखला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत मालाओं में से एक है। यह पर्वतमाला मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात से गुजरती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 700–800 किलोमीटर है, और यह गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर दिल्ली के पास रायशेला पहाड़ी तक फैली हुई है। अरावली राजस्थान को लगभग दो भागों में विभाजित करती है और हरियाणा के गुरुग्राम–अलवर क्षेत्र से भी होकर गुजरती है। इसकी सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर (1722 मीटर) माउंट आबू, राजस्थान में स्थित है।



अरावली पर्वत की कहानी

अरावली पर्वत श्रृंखला का निर्माण प्रोटेरोजोइक युग में हुआ था, यानी यह लगभग 25–35 करोड़ वर्ष पुरानी है। यह हिमालय से भी कहीं अधिक प्राचीन मानी जाती है। समय के साथ प्राकृतिक कटाव के कारण इसकी ऊँचाई कम होती चली गई।

पर्यावरणीय दृष्टि से अरावली अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकती है, भूजल स्तर को बनाए रखती है और दिल्ली-एनसीआर की हवा को साफ रखने में मदद करती है। इतिहास में अरावली क्षेत्र में भील जनजाति का निवास रहा है, और राजपूत काल में यह प्राकृतिक सुरक्षा कवच के रूप में काम करती थी।

लेकिन बीते कुछ दशकों में अवैध खनन, जंगलों की कटाई और तेज़ शहरीकरण के कारण अरावली को भारी नुकसान पहुँचा है।



सरकार के नए नियम और संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार ने अरावली के संरक्षण के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की समान (यूनिफॉर्म) परिभाषा को मंजूरी दी। इसके अनुसार, स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ ही संरक्षित अरावली क्षेत्र मानी जाएँगी।

नई खनन गतिविधियों पर पूर्ण रोक लगाई गई है और पुराने खनन पट्टों को सख्त पर्यावरणीय नियमों का पालन करना अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा, “अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट” जून 2025 में शुरू किया गया, जिसके तहत 1400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी हरित पट्टी विकसित करने की योजना है, ताकि अरावली का पारिस्थितिक संतुलन सुधारा जा सके।



वर्तमान विवाद और बहस

100 मीटर नियम को लेकर विवाद भी सामने आया है। #SaveAravalli अभियान के कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस परिभाषा से लगभग 90% अरावली क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो सकता है, जिससे खनन और निर्माण गतिविधियाँ बढ़ने का खतरा है।

सरकार का पक्ष है कि यह नियम वैज्ञानिक आधार पर तय किया गया है। भूमिगत संरचना, वन क्षेत्र और संवेदनशील इलाकों को पूरी तरह सुरक्षित रखा जाएगा।



प्रदर्शन अपडेट

राजस्थान के जयपुर में 24 दिसंबर 2025 को युवाओं ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली-एनसीआर में सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तेजी से ट्रेंड कर रहा है। पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि इस नियम के गलत क्रियान्वयन से अरावली क्षेत्र खतरे में पड़ सकता है।



पर्यावरणीय प्रभाव

अरावली पर्वतों का विनाश हिमालय पर दबाव बढ़ा सकता है, जिससे मानसून प्रभावित होगा और दिल्ली सहित आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता खराब हो सकती है। इस संकट के मद्देनजर अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है, जो राजस्थान के 19 जिलों में हरित पट्टी बनाएगा।



राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

केंद्र सरकार ने 23 दिसंबर 2025 को नई खनन पट्टियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। वहीं विपक्ष ने इसे टोकनिज्म बताया। विशेषज्ञों का कहना है कि नियम का सही क्रियान्वयन ही अरावली के दीर्घकालिक संरक्षण की गारंटी देगा।



निष्कर्ष

अरावली पर्वत श्रृंखला केवल पहाड़ों का समूह नहीं है, बल्कि भारत की जलवायु, पर्यावरण और इतिहास की रीढ़ है। इसके संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है।


संक्षिप्त में:

  1. 100 मीटर नियम के तहत अरावली पर्वतों में खनन पर रोक।
  2. पर्यावरणीय संरक्षण और ग्रीन वॉल परियोजना।
  3. सामाजिक और राजनीतिक बहस जारी।
  4. सही क्रियान्वयन से ही लंबी अवधि में संरक्षण संभव।

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