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05 February, 2022

Mausam kaise banta hai जानकारी हिन्दी मे, मौसम कैसे बनता है

Mausam kaise banta hai जानकारी हिन्दी मे, मौसम कैसे बनता है-

मौसम कैसे बनता  है -

मौसम का बनना और बारिश का होना  हमारे लिए चमत्कार से कम नहीं है। ये काम कैसे करता है? बारिश जो हमारे लिए साधारण सी बात है लेकिन यह ब्रम्हांड की सबसे अजीब प्रक्रियाओं में से एक है। हमारे शरीर में पानी की हर एक बूँद इस धरती पर अरबो सालो से मौजूद है हमारे शरीर में वही पानी है जो शायद पहले आदिमानव के शरीर में था।

आसमान से हमारी धरती बहुत की खास नजर आती है सौरमण्डल में हमारी धरती बहुत ही  अदभुत है इस पर विशाल समंदर है और यहां  के आसमान से पानी बरसता है।

Water cycle किसे कहते है ? 

धरती की सतह से पानी वाष्पित होता है और यह वायुमंडल में धीरे-धीरे ऊपर उठता है और वह वहां पर एकत्रित होकर बादलों का निर्माण करता है और फिर बारिश के रूप में फिर से वापस धरती पर आ जाता है  इसे हम Water cycle  कहते है। 

जब आप अंतरिक्ष  से पृथ्वी की ओर देखते है तो दो चीजे तुरंत नजर आती है सफ़ेद बादल और नीला समंदर। समंदर, बादल  और  साथ ही आपके आसपास उपस्थित पानी ये सब water cycle का हिस्सा है जिसकी वजह से इस पृथ्वी पर पानी है।  

इस water cycle में सबकुछ शामिल है हमारे सॉस लेने से लेकर हवा में आने वाली नमी और छोटी छोटी नदिया जो बहकर समंदर से जुड़ती है।

रती पर पानी, बारिश के  तौर पर गिरने के लिए सबसे पहले पानी की बूदों को आसमान में किसी ठोस कण पर जमना होता है। जैसे  किसी  Micrometeorite या सूक्ष्मजीव से 

मौसम कैसा है


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'मौसम कैसा है'

पानी आसमान में पहोचता कैसे  है?

सूरज की किरणे हमारी पृथ्वी को गरम करती है और जमीन में  यह पानी गरम होता है और भाप बनकर आसमान में ऊपर उठता है। 
धरती पर पानी के कण सूरज की गर्मी को absorb करते है इस ऊर्जा के मिलने से पानी के कण एक दूसरे से दूर जाने लगते है और liquid पानी भाप में बदलता है। 

जब पानी के कण गरम होते है तब वे हलके हो  जाते है और फिर वह आसमान में अपने साथ नमी  ले जाते है भाप के ये कण वातावरण में रहते है और  पुरे आसमान में घूमते है। 

हर समय आसमान से इतना पानी होता है कि अगर ये पानी एक साथ हमारी धरती पर गिरे तो हमारी पूरी पृथ्वी एक इंच पानी से ढक सकता है।

बादल कैसे बनते है ?

जब पानी भाप के रूप में ऊपर उठता है तो ठंडा भी होता है  और आसमान में तापमान पृथ्वी के जमीन  से कम होता है ठंडा होने के साथ साथ भाग घनी होती है और पानी के कण धीमे हो जाते है और फिर एक पल ऐसा आता है जब पानी के कण एक दूसरे से टकराकर फिर जुड़ जाते हैऔर दोबारा तरल आकर ले लेते है।

अगर पर्याप्त कण एक साथ जुड़ जाय तो फिर वो बड़े होकर नजर आने लगते है जिन्हे हम फिर जमीन से बादल के रूप में देख पाते है इसे बादल का बनना कहते है। 

हम भाप के कण को जोड़ते देख सकते है ये कण जुड़कर  सूर्य की किरणों को reflect करते है और वे हमें बदल के रूप में नजर आता है। 

धरती पर पानी की बारिश इस सौरमंडल की सबसे अनोखी घटना है लेकिन हमारे ब्रम्हांड में कई अजीबो गरीब बारिश होती है। 

हमको कई बार आसमान से मछली व मेढक बारिश के साथ गिरने की news सुनने को मिलती रहती है।आप माने या ना माने ये बाते एकदम सही है। 

इसके पीछे कुदरत की एक साधारण प्रक्रिया है जिसे  waterspout (जलस्तंभ / भवंडर ) कहते है। समंदर के  पानी के  ऊपर भवंडर लगभग  321 km की रफ़्तार से घूमते है जिससे जमीन की सतह पर उपस्थित सभी जीव जांतु इस भवंडर में चले जाते है।

भवंडर में हवाएं इतनी तेज होती है  की समंदर के जीव आसमान में ऊपर चले जाते है हवाएं शांत होने के बाद में पृथ्वी पर एक अनोखी बारिश होती है। लेकिन पानी की इस बारिश ने सदियों तक इस चीज को छिपाय रखा। 

बारिश दिखने में आसान है लेकिन बहुत कम लोग ये जानते है की बारिश होती कैसे है जैसे किसी अंतरिक्ष से आई चीजे या धरती के सूक्ष्मजीव, आसमान से पानी बरसाने में मदद है।

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''मौसम कैसा है''

बारिश कैसे होती है '' मौसम कैसा है ''?


बारिश कैसे होती है '' मौसम कैसा है ''? 

(Mausam kaise banta hai) बारिश की शुरुआत होती है  एक basic fact से। धरती पर हर जगह बारिश की शुरुआत ठोस रूप से होती है। बदलो में बारिश कि शुरुआत snow के रूप में हुई, जो वर्फ, हवा और पानी की छोटी छोटी  बूंदो का मिश्रण होता है।

धरती पर ज्यादा तर बारिश की शुरुआत snow से ही होती है। धरती के वातावरण के ऊपरी हिस्सों में तापमान शून्य से भी काफी कम होता है हमें पता है की पानी शून्य के तापमान पर वर्फ बनता है ये बात सही है लेकिन आसमान में ऐसा नहीं होता।

पानी वर्फ बनता है क्योकि तापमान शून्य से काम है। लेकिन ऐसा नहीं है पानी को वर्फ बनने के लिए उसे एक impurity या  मिट्टी के कण की जरुरत होती है जिससे आस पास वर्फ के crystal बना सके और तभी पानी ठोस आकर ले पाता  है और धरती के वातावरण में ऐसे कई छोटे कण है जो ये काम करते है। 

हमारे वातावरण में जो कण पाए जाते है वह अलग अलग जगहों से आते है जैसे की तूफान - 

जमीन से रेत को उठा कर आसमान में बादलो के  बीच ले जाता है। और कुछ बारिश बनाने वाले कण अंतरिक्ष से भी आते है जो हर रोज छोटे Micrometeorite धरती के वातावरण से टकराते है।

हमारी धरती छोटे Micrometeorite के  बदलो से गुजरती है वे बहुत छोटे होते है Micrometeorite इंसान के बाल की चौड़ाई से भी कम होते है इसलिए जब वे धरती पर गिरते है तो  उसकी रफ़्तार धीमी हो जाती है और आखिर में छोटी छोटी बूद के रूप में बदलो के बीच चला जाता है।

 बादलो में पानी की बूँदे crystallize  होना चाहती है लेकिन हो नहीं सकती क्योंकि उन्हें किसी कण  की जरुरत है जैसे की अंतरिक्ष से आया Micrometeorite.  

अंतरिक्ष से आये इस कण के बदलो में जाते ही पानी की बुँदे इस कण के आस पास crystallize हो जाती है ऐसा दिनमे अरबो बार होता है और इसका प्रमाण धरती पर हर जगह है।

जब पानी की बूँद  Micrometeorite  के ऊपर crystal बनाती है तो ये crystal खुद एक कण की तरह दूसरे बूदों का आधार बन जाता है और बूँदे इससे जुड़कर जमने लगती है एक वर्फ का crystal दूसरी बूदों का  एक अच्छा आधार होता है।  

जैसे ही वर्फ बनना शुरू होती है वैसे ही एक के ऊपर एक crystal बनते जाते है छोटे छोटे crystal के जुड़ने से ये वर्फ बहुत बाड़ा आकर ले लेती है और बजन बढ़ जाता है जिससे  वह नीचे गिरने लगता है।

आज का मौसम कैसा है Mausam कैसे बनता है?


वो  धरती के जितने करीब आते है  तापमान उतना बढ़ता जाता है और जब वह गर्म हवा से गुजरते है तो गर्म हवा उन वर्फ के बने crystal को ऊर्जा देती है ऊर्जा मिलने पर वर्फ पिघलने लगती है और बारिश का रूप लेती है.

 और आखिरकार पानी की बुँदे जमीन पर गिरती है यानी बरसात के दौरान अगर आप किसी बारिश की बूद को पकड़ते हो तो हो सकता है की आपके हाथ में आपने एक छोटे Micrometeorite को पकड़ा हो। 

इसके अलावा धूल के कण या सूक्ष्मजीव बारिश की ये बूँदे किसी जिन्दा सूक्ष्मजीव के आधार पर भी बन सकती है लेकिन सूक्ष्मजीवो के आधार पर बारिश के गिरने से कई और अनोखी घटनाएं धरती पर होती है। 

कुछ सालो पहले तक वैज्ञानिको का मानना था की घरती पर सभी बारिश पानी के किसी ठोस कण पर solidify ( जमने से ) होने से बनती थी।

लेकिन ये अब पता चला है की कुछ बारिश आसमान में फशे जिन्दा सूक्ष्मजीव की वजह से बनती है जो फिर से जमीन पर लौटने के इंतज़ार में होते है।

हम ये लंम्बे समय से जानते है की सूक्ष्मजीव अपनी जगह बदलने के लिए वातावरण का इस्तेमाल करते है।   रोज गरम हवा वातावरण में उठाती है और अपने साथ वैक्टीरिया को  ले जाती है। 

हमारे शरीर में ज्यादातर पानी है इसीलिए इंसान भी इस वर्षाचक्र (water cycle) का अहम हिस्सा है। हमारा शरीर  60 %पानी का बना है और यही  पानी लगातार recycle हो रहा है तब से जब पृथ्वी पर पहलीबार बारिश हुई।

अब जाकर हम इंसान समझ पाए की आसमान से बरसने वाला पानी किस तरह ठोस तरल और भाप बनता है।

ये एक ऐसी घटना है जो केवल पृथ्वी पर होती है।और सबसे जरुरी किस तरह पानी की बरसात ने  इस धरती को सौरमंडल के एक आमगृह से खाश गृह बना दिया।

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